इस अंजाम पे रोना आया ...
क्यों भुला दिया साज के उस साधक को
वेद विलास उनियाल
भारतीय फिल्म संगीत के जिस दौर को स्वर्णिम दौर कहा जाता है उसमें संगीत की चर्चा में कई दिग्गज संगीतकारों का जिक्र होता है। कुछ संगीतकारों ने साथ मिलकर संगीत रचा तो कुछ अपने स्तर पर ही एक के बाद एक नायाब धुन देते रहे। वह दौर इसलिए भी याद किया जाता है कि हर संगीतकार की अपनी खास शैली रही। गीत संगीत को सुनते ही संगीत के चाहने वाले संगीतकार और गीतकार के नाम का भी आभास कर लेते थे। तब संगीतकारों ने अपने संगीत में कई प्रयोग किए । शास्त्रीयता पर आधारित धुन बनाई वहीं लोकधुनों के प्रभाव में भी उनका संगीत सजता रहा। कव्वाली गजल हर विधा पर संगीत रचा गया। ऐसे में कुछ संगीतकारों को अपार शोहरत मिली । लेकिन कुछ संगीतकार अपनी विलक्षण प्रतिभा के बावजूद कुछ गीतों के संगीत तक सीमित रहे। हालांकि उनके वो गीत भी कालजयी बने। ऐसे संगीतकारों में दानसिंह, सरदार मलिक सीएन त्रिपाठी सपन जगमोहन जैसे संगीतकारों का नाम लिया जा सकता है। लेकिन फिर भी वो जाने पहचाने रहे। लेकिन इस दौर में मुरली मनोहर स्वरूप जैसे संगीतकार भी रहे जिनके संगीत में सजे गीत आरती गजल भारत में गूंजते रहे लेकिन उन्हें वो शोहरत नहीं मिली जिसके वो सही मायनों में हकदार थे। स्वतंत्र भारत के विलक्षण संगीतकारों में अगर शीर्ष नामों में चर्चा हो तो मुरली मनोहर स्वरूप का नाम शुमार होना चाहिए।
प्रख्यात भजन गायक हरी ओम शरण ने श्री राधे गोविंदा , मन भजले हर का प्यारा नाम है, मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तिहारे आऊं, आरती कुंज बिहारी, ऐसा प्रेम बहा दे मैय्या, रामजी करेंगे बेड़ा पार जैसे भजनों को गाया है। उन्होंने हनुमान चालिसा भी गाई है। पुष्पांजली और दाता एक राम सुमिरन जैसे भजन एलबम घर घर गूंजे हैं। इन्हें श्रद्धा और भावुकता के साथ सुना गया। उस दौर में जब टेपरिकार्ड पर गीत सुने जाते थे। लोग सुंबह और शाम हरी ओम शरण के भजनों को सुना करते थे। ये भजन आज भी उतने ही लोकप्रिय है। मन को शांत करते हैं। इन भजनों के संगीतकार मुरली मनोहर स्वरूप ही थे। उन्होंने ढोलक हारमोनियम तबला सारंगी खड़ताल चिमटा बांसुरी जैसे साजों से भजनों की मधुर झंकार भरी । जितने सुंदर भजन लिखे गए और जितना सुंदर उन भजनों को हरी ओम शरण ने गाया वह अद्भुत है।
प्रख्यात गायक मुकेश की गाई रामचरित मानस भाव विभोर करती है। प्रतिदिन रामचरित मानस पढने वाले मुकेश के मन में शुरू से था कि वह रामचरित मानस का गायन कर उसे रिकार्ड कराए। यह भी संयोग था कि 1976 में अपने कार्य़क्रम के लिए अमेरिका रवाना होने से पहले उन्होंने रामचरितमानस का उत्तर कांड भी अपनी आवाज में रिकार्ड करा लिया था। एचएमवी के लिए मुकेश के गाई राम चरित मानस बहुत लोकप्रिय हुई। राम चरित मानस के सभी खंडों को संगीतबद्ध करना सहज काम नहीं था। लेकिन मुरली मनोहर स्वरूप ने बहुत सुंदरता से मुकेश की गाई रामचरित मानस को संगीत बद्ध किया था। रामचरित मानस के लिए कहा जाता है कि तुलसी ने अगर लिखकर रामकथा को अमर किया तो मुकेश ने उसे स्वर देकर फिर भारतीय जनमानस को भाव विभोर किया। मुरली मनोहर स्वरूप ने रामचरित मानस के संगीत के हर कांड में कथा प्रसंगों के अनुरूप संगीत रचा। रामचरितमानस में संस्कृत के श्लोंको को पूरी शुद्धता और मुधरता से मुकेश से गवाया। यही नहीं कोरस और सहगायन में वाणी जयराम नितिन मुकेश को साथ इसे बहुत सुरीला बनाया। मुकेश की गाई रामचरित मानस घर घर में गूंजती है।
यूपी में कासगंज संगीत की माटी में संगीत रचा बसा है। इस माटी में भारतीय शास्त्रीय संगीत में ख्याल गायन शैली को सामने लाने वाले अमीर खुसरो ने जन्म लिया। गजल ख्याल तमाम गायन विधाओं केसाथ उन्होंने सारंगी सरोद जैसे साज का अविष्कार किया। कासंगज में ही गोस्वामी तुलसीदास और नंद दास को संगीत की शिक्षा देने वाले हरिदरदास की संगीत पाठशाला भी थी। कई रागरागनियों के प्रवतकों ने कासगंज का नाम रोशन किया। आज के समय में रिचा शर्मा के गीत लोगों को भाते हैं। वह भी इसी कासगंज के पटियाली से आती है। कासगंज में गीत संगीत के दिग्गजों के अलावा प्रसिद्ध कथावाचक भी रहे हैं। इस भूमि को संगीत के संस्कार भी मिले और अध्यात्म की जोत भी जगी। कासगंज के संस्कारों में ही पले बसे मुरली मनोहर स्वरूप ने गीत संगीत में सुरों की बरसात की।
मुरली मनोहर स्वरूप ने पचास के दशक से नब्बे के दशक तक भारतीय संगीत की सेवा की। उन्होंने भारतीय जनमानस को अद्भुत भजन और मंत्रों का संगीत की। भजनों की गंगा उनके संगीत का स्पर्श पाती रही। लेकिन इतना ही नहीं उनका योगदान भारत में एलपी रिकार्ड की शुरुआत कराने का भी है। 1930 में वह अपने पिता नारायण स्वरूप के साथ कोलकाता चले गए थे। फिर उन्होंने ग्रामोफोन म्यूजिक कंपनी में काम करने इंग्लैड गए। पचास के दशक में इंग्लैड की म्यूजिक रिकार्ड कंपनी हिज मास्टर्स वायस एमएमपी के साथ मिलकर भारत में म्यूजिक रिकार्ड और एल्बम की शुरुआत की। एक तरह से भारत में यह संगीत प्रचार प्रचार की क्रांति थी। यह भी जानना रोचक है कि उनके संगीत निर्देशन में मुकेश लता मंगेशकर हरिओम शरण बेगम अखतर शारदा सिन्हा महेंद्र कपूर मोहम्मद रफी किशोर कुमार सबने गीत गाए। अलग अलग विधाओं के ये गीत खासे लोकप्रिय हुए। लेकिन अफसोस यही है कि मुरली मनोहर स्वरूप कलाकारों के बीच और म्यूजिक इंडस्ट्री के बीच तो चर्चित नाम रहा पर जनमानस में उन्हें बहुत चर्चा नहीं मिली। समझा जा सकता है कि कितने लोग जानते होंगे कि सत्तर के दशक में हरिओंम शरण की गाई दाता एक राम का जो म्यूजिक एलबम दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ उसका संगीत रचने वाले मुरली मनोहर स्वरूप ही थे। जिस हनुमान चालिसा को घर घर गाया जाता है उसके व्यवस्थित धुन मनोहर स्वरूप ने ही तैयार की थी। मुकेश के गाए प्रसिद्ध भजन जिनके हृद्य श्री राम बसे , तूने रात गंवाई सोय के, दुख हरो द्वारिका नाथ शरण में तैरी , प्रभु मैं आपही आप भुलाया, राम नाम रट रे का संगीत भी उन्होंने ही रचा था।
मुरली मनोहर स्वरूप की ख्याति केवल भजनों के लिए ही नहीं है। बेगम अख्तर की कई गजलों को उन्होंने स्वर बद्ध किया। ये मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया बेगम अख्तर की मशहूर गजल है। इसका संगीत भी मनोहर स्वरूप के साजों से निखरा। बुझी हुई शमा का धुंआ और उनकी बेरुखी में भी इसी तरह की एक चर्चित गजल है। इसी तरह की मुकेश की गाई बराबर से बचकर निकलने वाले, मेरे महबूब मेरे दोस्त को बेहतरीन संगीत के लिए याद किया जाता है। मन्नाडे का हैरान हूं सनम बहुत लोकप्रिय हुई। लाई हतात आए कजा ले चली चले, ये न थी हमारी किस्मत जैसी गजलों को भी उन्होंने धुनों से सजाया।
भारतीय लोकजीवन में शारदा सिन्हा का गायन अनमोल है। उन्होंने छठ पर्व के गीतों को सजाया। लोकमंगल के गीत गाए। लेकिन शारदा सिन्हा के गायन की सुंदर बानगी उनके विवाह के विदाई गीतों में भी झलकती है। उनके विदाई गीत आंखो को नम कर देते हैं। राम सीता विवाह के प्रसंगों को लेकर भी भोजपुरी मैथली में गीत गाए हैं। मुरली मनोहर स्वरूप के साजों में शारदा सिन्हा के विवाह विदाई गीत लोकजीवन की धरोहर बन गए हैं। सिंदुरिया देश के अलग अलग क्षेत्रों के लोकगीतों को उन्होंने अपने संगीत से सजाया।
मुरली मनोहर स्वरूप नब्बे के दशक में अपनी बेटी के पास लंदन चले गए थे। इसके बाद वह गुमनामी में रहे। हरिवंश राय राय बच्चन की मधुशाला की लोकप्रियता में मन्नाडे को तो श्रेय मिला पर जयदेव का संगीत को भुला दिया गया। कुछ ऐसा ही अग्निपथ अग्निपथ तो सुर संगीत में सज गया, लेकिन मुरली मनोहर स्वरूप की याद किसी ने नहीं की। वास्तव में भारतीय संगीत में नौशाद शंकर जयकिशन मदन मोहन एसडी बर्मन कल्याणजी आनंदजी लक्ष्मी प्यारेलाल खैय्याम रोशन सबको अपने सृजन पर शोहरत मिली। मुरली मनोहर स्वरूप इसी स्तर पर विलक्षण साधक माने गए । संगीत में रमे लोगों को और भारतीय समाज को उन्हें उनका श्रेय देना चाहिए। जो अब तक नहीं मिल सका।
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