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बुद्धिजीवी की कलम से

पृथ्वी की घूमने की गति बढ़ी,24 घंटे से भी कम समय में हो रहा दिन पूरा ! विस्तृत पढ़ें ।

दिल्ली/देहरादून,राजीव लखेड़ा ।

वैज्ञानिकों के मुताबिक पृथ्वी पिछले 50 सालों में किसी भी समय की तुलना में तेजी से घूम रही है.   

हम एक दिन को 86,400 सेकंड या 24 घंटे के रूप में परिभाषित करते हैं - वह समय जो पृथ्वी को एक बार घूमने में लगता है। हालाँकि, पृथ्वी पूरी तरह से समान रूप से नहीं घूमती है। आमतौर पर, पृथ्वी का घूर्णन वास्तव में धीमा हो रहा है जिससे दिन की लंबाई औसतन प्रति शताब्दी लगभग 1.8 मिलीसेकंड बढ़ जाती है। इसका मतलब है कि 600 मिलियन साल पहले एक दिन केवल 21 घंटे तक चलता था।

 *अपनी धुरी पर तेज घूम रही है पृथ्वी, एक दिन में इतने सेकंड हुए कम* 

पिछले कुछ समय से पृथ्वी अपनी धुरी पर तेजी के साथ घूम रही है. इसकी सीधा असर समय पर पड़ रहा है. वैज्ञानिक भी इस बात से परेशान है कि इसे कैसे मैनेज किया जाए. पृथ्वी के धुरी पर तेज घूमने का सीधा असर समय पर पड़ता है.डेली मेल की खबर के अनुसार, पृथ्वी इस समय 24 घंटे में 0.5 मिलीसेकेंड कम समय लेकर घूम रही है यानी हमारे 24 घंटे में 0.5 मिलीसेकेंड कम हो चुके हैं.  19 जुलाई 2020 का दिन 24 घंटे से 1.4602 मिलीसेकेंड कम था.

इससे पहले सबसे छोटा दिन 2005 में था, लेकिन पिछले 12 महीनों में ये रिकॉर्ड कुल 28 बार टूटा है.

 *अपनी धुरी पर तेज घूम रही है पृथ्वी* 

पिछले कुछ समय से पृथ्वी अपनी धुरी पर तेजी के साथ घूम रही है. इसकी सीधा असर समय पर पड़ रहा है. वैज्ञानिक भी इस बात से परेशान है कि इसे कैसे मैनेज किया जाए. पृथ्वी के धुरी पर तेज घूमने का सीधा असर समय पर पड़ता है. अगर पृथ्वी अपनी धुर पर तेज घूमती है तो दिन छोटा हो जाता है और अगर पृथ्वी धीमे घूमती है तो दिन बड़ा हो जाता है. 

वैज्ञानिकों के मुताबिक पृथ्वी पिछले 50 सालों में किसी भी समय की तुलना में तेजी से घूम रही है. डेली मेल की खबर के अनुसार, पृथ्वी इस समय 24 घंटे में 0.5 मिलीसेकेंड कम समय लेकर घूम रही है यानी हमारे 24 घंटे में 0.5 मिलीसेकेंड कम हो चुके हैं.  19 जुलाई 2020 का दिन 24 घंटे से 1.4602 मिलीसेकेंड कम था.  इससे पहले सबसे छोटा दिन 2005 में था, लेकिन पिछले 12 महीनों में ये रिकॉर्ड कुल 28 बार टूटा है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के घूमने की रफ्तार का असर 2021 में ज्यादा देखने मिलेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी अपने तय समय से कम समय में एक चक्कर पूरा कर रही है. हो सकता है कि पृथ्वी पर रह रहे लोगों को समय के साथ चलने के लिए निगेटिव लीप सेकंड जोड़ना पड़े. 1970 से अब तक 27 लीप सेकंड जोड़ चुके हैं। पिछली बार साल 2016 में लीप सेकंड जोड़ा गया है.

 *हमारे जीवन पर क्या असर होगा?* 

पृथ्वी अपनी धुरी पर ज्यादा तेजी से घूम रही है, इसकी वजह से सभी देशों का समय बदल जाता है. इससे हमारी संचार व्यवस्था में भी दिक्कतें आ सकती हैं क्योंकि सेटेलाइट्स और संचार यंत्र सोलर टाइम के अनुसार ही सेट किया जाते है. ये समय तारों, चांद और सूरज के पोजिशन के अनुसार सेट की जाती है. नेविगेशन सिस्टम पर भी इसका असर पड़ेगा.

रिपोर्ट कहती है कि अगर धऱती तेजी से घूमती रही तो लीप सेकेंड पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इससे स्मार्ट फोन, कंप्यूटर्स और कम्यूनिकेशन सिस्टम को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। मेटा ब्लॉग का जिक्र कर रिपोर्ट में कहा गया है कि लीप सेकेंड वैज्ञानिकों के लिए तो फायदे का सौदा है लेकिन ये एक रिस्की प्रैक्टिस है। इसके फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकते हैं।

ऐसा इस वजह से है कि घड़ी आगे बढ़ती है तो 11 बजकर 59 मिनट और 59 सेकेंड से आगे बढ़कर 60 सेकेंड पर आती है। उसके बाद ही 12 बजते हैं। अगर धऱती ऐसे ही जल्दी से चक्कर पूरा करती रही तो प्रोग्राम क्रैश होने के साथ डाटा भी करप्ट हो सकता हैं,क्योंकि 00:59 से घडी  00:00 पर आती है।

जो सॉफ्टवेयर समय पर केंद्रित होते हैं उनके लिए भारी मुसीबत पैदा हो सकती है। इस दिक्कत को दूर करने के लिए जरूरी है कि इंटरनेशनल टाईम कीपर्स को नेगेटिव लीप सेकेंड जोड़ना पड़ सकता है। हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि लीप सेकेंड पहले ही 27 बार अपडेट किया जा चुका है।
हालांकि इससे पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि पृथ्वी की रफ्तार धीमी हुई है।

 *कारण क्या है पृथ्वी की घूमने की गति बढ़ने की ?*

इंडिपेंडेंट के अनुसार, इसके कारण ग्लेशियरों का पिघलना और बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन, ग्रह के आंतरिक पिघले हुए कोर की गति, भूकंपीय गतिविधि और 'चांडलर वॉबल' नामक घटना हो सकती है।

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