समंदर की लहरें हों और किनारे में तुम और हम,
साथ हो तुम्हारा और हाथ में मेरे हाथ, नीली चादर ओढ़े हो आसमां हम पर और धरती के नज़ारे हों साथ तो फिर दोबारा इस जहान में आने की चाह किसको है।
सूरज की किरणों के साथ तितलियों की उड़ाने हों,
रंग-बिरंगी तितलियां उड़ रही हों जहान में,
और हम भी हों उनके साथ तो फिर दोबारा इस जहान में आने की चाह किसको है।
इसी जन्म में मिल गया तुम्हारे जैसा हमसफ़र,
तो फिर सात जन्मों तक हमसफ़र की चाह किसको है,
तुम यूं ही बस साथ दो मेरा, इस सफ़र में,
फिर और सफ़रों की चाह किसको है। इस जहान में मिल चुकी हो तुम मुझे, तो फिर दोबारा इस जहान में आने की चाह किसको है?
कह तो दिया तुमने की हम हैं तुम्हारे साथ,
हर राहों में साथ हैं तेरे दुखों में,
तो फिर दुखों की परवाह किसको है। जब साथ है तुम्हारा मेरे साथ,
तो फिर किसी और के साथ की चाह किसको है?
तुमने कह तो दिया कि हम हैं तुम्हारे, तो फिर दोबारा इस जहान में आने की चाह किसको है?
ख़ुशियां हैं तुम से ही, और ये जहान भी तुमसे,
चाह भी तुम्हारी और अरमान भी तुमसे, तो फिर और कुछ दुवाओं में ख़ुदा से चाह किसको है,
जब मिल गया तुम जैसा हमराही इस जहान में तो फिर दोबारा इस जहान में आने की चाह किसको है।।
(रवि कैंतुरा)
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