उत्तराखंड के प्रसिद्ध हास्य अभिनेता कलाकार घनानंद गगोडिया के निधन पर पूरे राज्य में शोक की लहर छा गई, उत्तराखंड में लोग उन्हें घन्ना भाई के नाम से पुकारते थे। उत्तराखंड में क्षेत्रीय भाषा में फिल्मों की शुरुआत के साथ ही घन्ना भाई अपनी हास्य अभिनय से छा गए थे। सांस्कृतिक मंचों से लेकर रामलीला के मंचों पर घन्ना भाई की उपस्थिति सबको हंसा-हंसा कर लोट पोट करती थी। लोकमंचों पर हास्य विधा की जिस परंपरा को पौडी के मास्टर कुंवर बाबू ने स्थापित किया था घन्ना भाई ने आगे चलकर उसे और विस्तार दिया। घन्ना भाई इस दुनिया से चले गए, यादों में रह गई उनकी ठहाकों भरे वो कार्यक्रम
प्रसिद्ध कलाकार घन्ना भाई के निधन से उत्तराखंड में शोक की लहर छा गई, घन्ना भाई का पूरा नाम घनानंद गगोडिया था। लेकिन उनकी कला के प्रशंसकों को उन्हें हमेशा घन्ना भाई के नाम से ही पुकारा। घन्ना भाई के मंच में आते ही ठहाके लगते थे। उत्तराखंड के घरजवैं फिल्म से लेकर घन्ना भाई एमबीबीएस जैसी फिल्मों में उनका अभिनय लोगों को गुदगुदाता रहा, फिल्मों में घन्ना भाई के होने का मतलब हास परिहास की बौछार।
फिल्मों में उनके नेगिटिव रोल भी दिखे जिसमें हास्य के अपने पुट झलकते थे, अभिनय संवाद अदायगी चेहरे के हाव भाव से घन्ना भाई ने कला का वो स्तर पा लिया था कि उनकी उपस्थिति भर इस तरह से रोमांचित कर देती थी, जैसे मुंबई फिल्मों में जानी वाकर के आते ही सिने दर्शक समझ जाते थे कि अब हंसने की बारी आ गई।
इस वजह से लोग उन्हें उत्तराखंड का जानी वाकर भी कहते थे, मुंबई फिल्मों को अगर जानी वाकर ने अपनी तरह से खिलखिलाया तो उत्तराखंड के सांस्कृतिक मंच और फिल्मों को घन्नाभाई ने अपनी हास्य अभिनय की छाप छोड़ी। पहाड़ी भाषा में कहें तो लोग उन्हें देखकर बगछट हो जाते थे, यानी दर्शकों को जी भर कर मनोरंजन मिलता था।
घनानंद का जन्म पौड़ी के गगोल गांव में 1953 को हुआ था, पौड़ी के लेंसडाउन शिंक्षा केंट में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ली। अभिनय का शौक उन्हें बचपन से ही था, उत्तराखंड के तमाम कलाकारों की तरह उन्होंने भी रामलीला के मंचों को अपनी अभिव्यक्ति का पहला माध्यम बनाया। रामलीला में जब दृश्य बदलते थे तो घन्ना भाईकी प्रस्तुति होती थी। इसके अलावा रामलीला के हास्य प्रसंगों में भी वह अपनी झलक दिखाते थे। उत्तराखंड में राम लीला में पौड़ी के मास्टर कुंवर बाबू की हास्य विधा में अपनी खास पहचान रही, रामलीला का मैदान में आए श्रोता उनके नाम पुकारे जाने भर से खिलखिला उठते थे।
खासकर धनुष यज्ञ और शूर्पनखा प्रसंग के समय उनका अभिनय लोगों को मंत्र मुग्ध करता था। घन्ना भाई ने भी थोड़ा हटकर अपनी प्रस्तुतियों को सजाया, सत्तर के दशक से उन्होंने रामलीला के मंचो के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति देनी शुरु की, उनके कार्यक्रम पसंद किए गए। आकाशवाणी नजीमाबाद में भी उन्होंने नाट्य एकांकी और हास्य कार्य़क्रम की प्रस्तुतियों में भाग लिया। वह छोटी-छोटी हास्य कविता चुटकिले गानों की नकल पर लोगों को हसाया करते थे। वह प्रसंगों को जोड़ने में कुशल थे और शराबी की अदा इस तरह करते थे कि मुंबई फिल्मों के जानी वाकर याद आते थे। उत्तराखंड में हास्य की परंपरा को बाबू कुंवर घन्ना भाई और मुकेश नौटियाल बहुत आगे ले गए। जिस तरह राजू श्रीवास्तव अपने कार्यक्रम बनाते थे उसी तरह घन्ना भाई भी प्रतीकों पर प्रस्तुति तैयार करते थे।
घन्ना भाई की कला की असली कद्र तब हुई जब उत्तराखंड फिल्मों के पहले निर्माता निर्देशक पाराशर गौड 'घरजवें' फिल्म लेकर आए। घन्ना फिर घर-घर पहचाने गए। इसके बाद उत्तराखंड की फिल्मों में घन्ना की स्थाई जगह बन गई। चक्रचाल बेटी ब्वारी जीतू बगड़वाल संत मंगल्या घन्ना भाई एमबीबीएस घन्ना गिरगिट जैसी फिल्में उनके शानदार कला अभिनय के लिए याद रखी जाएंगी। इन फिल्मों में उन्होंने अलग अलग तरह के पात्रों को निभाया। नेता, शराबी, जमींदार का चमचा, गांव का लोफर, तमाम पात्रों के अभिनय को बखूबी किया। लेकिन उनकी कला में हास्य पुट हमेशा रहा।
घन्ना भाई के कार्यक्रमों की प्रस्तुति अपना रंग जमाती थी, यहां तक कि उत्तराखंड के चर्चित लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के कार्य़क्रमों में एक समय घन्ना भाई की उपस्थिति रहती थी। कार्य़क्रम में आने वाले श्रोता यह जानते थे कि नरेंद्र सिंह नेगी के गीत सुनने को मिलेंगे और घन्ना भाई के हास परिहास से भरा कार्यक्रम भी होगा। वह अपनी प्रस्तुतियों में राजनीति को भी मजे मजे में निशाना बनाते थे। वहीं उत्तराखंड के जनजीवन पर भी वो खासा हास परिहास करते थे, अपनी खास अदा में वह चुटकिले भी सुनाया करते थे।
उत्तराखंड के गीतों भरे कार्य़क्रम में इस झलकी का अपना महत्व रहता था, बाद में घन्ना ने अपने स्तर पर कार्यक्रम देने शुरू किया। राजनीति में आने की उनकी प्रबल इच्छा रही। उन्होंने 2012 में बीजेपी के टिकट पर पौड़ी विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन वह अपना चुनाव हार गए। हालांकि बाद में उन्हें शासन ने कला संस्कृति विभाग का अहम दायित्व भी सौंपा। लोककलाकार घन्ना के निधन पर उत्तराखंड के सामाजिक सांस्कृतिक संगठनों और नाट्य कला जगत से जुड़े लोगों ने गहरा शोक जताकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।
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