देहरादून: डिस्कवर मासिक पत्रिका के सम्पादक और यमकेश्वर के साकिल बाड़ी के भूगर्भ शास्त्री, कुशल फोटोग्राफर दिनेश कंडवाल जी ने ओएनजीसी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। दो दिन पहले ही आंतों में इंफेक्शन होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।
दिनेश कंडवाल जी ने अपनी जिंदगी की शुरुआती पत्रकारिता अखबार तरुण हिन्द से शुरू की थी। ओएनजीसी में नौकरी लगने के बाद भी उन्होंने अपना लेखन कार्य जारी रखा उन्होंने पत्रिका, धर्मयुग, कादम्बनी, हिन्दुस्तान, नवीन पराग, सन्डे मेल सहित दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहते थे। नार्थ ईस्ट में त्रिपुरा सरकार द्वारा उनकी पुस्तक “त्रिपुरा की आदिवासी लोककथाएँ” प्रकाशित की गयी जो आज भी वहां की स्टाल पर सजी मिलती है। इसके अलावा उन्होंने ओएनजीसी की त्रिपुरा मैगजीन “त्रिपुरेश्वरी” पत्रिका का वर्षों सम्पादन किया।
वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल ने उन्हें याद करते हुए कहा कि दिनेश कंडवालजी का जाना सदमे की तरह है। कहा कि मैंने इतना अच्छा आत्मीय अग्रज दोस्त ,लेखक, भू वैज्ञानिक प्रकृति प्रेमी अथाह घुमक्कडी दोस्त खोया है. बमुश्किल मिलते हैं इतने अच्छे दोस्त। बस अब आप यादो में ईश्वर से आपकी आत्मा के लिए शांति। परिवार को दुख सहने करने की शक्ति। ... दोस्ती का एक खालीपन महसूस कर रहा हूं।उन्होंने बताया कि पक्षियों तिललियों से उन्हें गहरा लगाव था। फेसबुक पर ही सही वह फोटोग्राफी से दुर्लभ चित्र हमें दिखाया करते थे। पक्षियों पर उनका ज्ञान असाधारण था। बेहद दुलर्भ पक्षियों के बारे में वो बताया करते थे। साथ ही आसाम त्रिपुरा से जुडी अपनी दास्तान सुनाया करते थे। बेहद संजीदा इंसान चला गया। मैं हमेशा कहता था कि आप इन सबको किताब का रूप दीजिए । हमेशा कहते थे बस जल्दी ही किताब आने वाली है। लेकिन फिर चल देते थे कहीं किसी दिशा की ओर फिर से लौट आने के लिए । लेकिन इस बार उस ओर चले गए जहां से कोई लौट कर नहीं आता। यादों में रह जाता है।
उनकी मृत्यु पर जिलाधिकारी पौड़ी ने उनकी पौड़ी गढ़वाल की अंतिम यात्रा का स्मरण करते उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पद्मश्री प्रीतम भरतवाण, दूरदर्शन देहरादून के प्रमुख डॉ सुभाष थलेड़ी ने इसे पत्रकारिता जगत के लिए बड़ा आघात बताया।
लेखन अड्डा समेत कई पत्रकार संगठनों, उत्तराखंड वेब मीडिया एसोसिएशन के सैकड़ों पत्रकारों ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की है।
0 Comments